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अपने पुरखों की बताई माटी कला की परम्परा आज भी निभा रहे हैं।

रायपुरिया@राजेश राठौड़

रायपुरिया निप अपने पुरखों की परम्परा को निभाते चले आ रहे है स्थानीय प्रजापत समाज के कुछ लोग उन्होने शुरुआत की थी तो निभानी है यह बात माटीकला के पुत्र जगदीश प्रजापत कह रहे थे दिपावली पर्व नजदीक आगया है ऐसे में अपने बुजुर्गों द्वारा बताए गांव में जाकर दीपक एवं मटकी रखना है यह कार्य आठ से दस दिनों से चल रहा अपनी मोटरसाइकिल के ऊपर ढाचा रख उसमें मटकीया एवं दीपक भरे हुए थे हमने पुछा की इतनी सारी मटकी एवं दीपक कहा ले जा रहे हो तो बताया कि गामडे में रखना जाना है क्योंकि यह गांव हमारे बुजुर्ग द्वारा दिए गए हैं एक व्यक्ति के पास छः से सात गांव होते आदिवासी भाई दीपावली पर हमारा इंतजार करते हैं दिपावली पर प्रजापत बा आवेगा अपने घर वह दीपक मटकी रखने उसी से अपने घर रोशनी होगी गांव सागडीया के बाबु भाई बताते हैं यह लोग अभी दीपक मटकी रख जाते हैं गेहूं की फसल निकलने के बाद हमारे घर आते तब हम उन्हें दीपक मटकी का मेहनताना देते हैं वह भी तिलक निकल कर अपने घर भोजन भी करवाते है गोपाल प्रजापत बताते हैं पहले हमारे बुजुर्ग घर पर चाक पर दीपक बनाते थे लेकिन अब समयभाव और अन्य परिस्थितियों के कारण हम राणापुर, मेघनगर, रंभापुर ,बाग से खरीद कर लाते है ताकि हमारी परंपरा नहीं टूटे पहले हमारे यहां भी दीपक ओर मटके बनाने की आवश्यक मिट्टी आसानी से मिल जाती थी एवं इन चीजों को पकाने के लिए जगह भी पर्याप्त उपलब्ध हो जाती थी लेकिन अब जगह की भी कमी मिट्टी की कमी ओर युवा पीढ़ी इस कला को सीखने में रुचि नही लेती इस वजह से अन्य जगह से यह चीज खरीद कर लाना पड़ती है सुबह जल्दी इन गांवों में पहुंचना पड़ता क्योंकि सभी लोग खेतो पर अन्य जगह कामकाज से निकल जाते है इस लिए सुबह तीन से चार बजे निकलना पड़ता है ओर उनके घर दीपक ओर मटकी रख के आते है।

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