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अपनी तोतली आवाज में मालवी भाषा में संजा के गीत गाती लड़िकयां, हे संजा के घर जाऊंगा खीर पूरी खाऊंगा राजु की लाड़ी ने ओढ़ता नहीं आवे , पेरता नही आवे सगी नन्द ने बुलाई दो रे भंवरिया।

रायपुरिया@राजेश राठौड़

रायपुरिया निप अंचल में गणपति बाबा विसर्जन के बाद पूर्णिमा की रात्रि से ग्रामीण अंचलों के घरों पर गूंजने लगे संजा बाई के गीत कुंवारी लड़कियां अपने घर की दीवार पर संजा बाई बनाती है सोलह श्रद्धा के दिन से प्रतिदिन शाम को यह लड़कियां अपने आंगन में बैठ जाती है और संजा बाई की आरती उतरती है उसके बाद अपनी सहेलियों के साथ गीत गाती है आधुनिकता के इस युग में अब रेडीमेड संजा बाजार से खरीद कर सजा को दीवार पर चिपका देती है पहले गोबर से बनाई जाती थी तरह-तरह के फूल चिपकाती थी लेकिन अब आधुनिकता का युग है उस हिसाब से काम होता है पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि संजा बाई यानी की मां पार्वती का स्वरूप‌ है कहते हैं कि माता पार्वती अपने मायके में 16 दिन श्राद्ध पक्ष में रहती है इसीलिए यह कुंवारी लड़कियां संजा बाई वृत्त बनाकर उनकी पूजा अर्चना करती है आखिरी दिन धूप ध्यान ,नैवेद्य लगाकर इनका नदियों में विसर्जन भी होता है ।

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