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ब्रजमंडल भूमि के कण कण में श्री कृष्ण समाहित है

रायपुरिया@राजेश राठौड़ 

रायपुरिया- निप झाबुआ जिले के आदिवासी अंचल पेटलावद तहसील के ग्राम रायपुरिया में आयोजित श्रीमद्भागवत भक्ति महोत्सव में अंचल के हजारों संख्या में श्रोताजन भाग लेने पहुँचे। श्री हरिहरआश्रम बनी के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री व्यास पीठ पर विराजमान होकर कथा श्रवण करा रहे हैं। आज छठें दिन कृष्ण व रुक्मणी के विवाह पर पूरा पांडाल झूम उठा। आचार्य श्री ने कहा कि ब्रजमंडल में भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीला माधुरी से सभी को दर्शन कराते हैं। भगवान श्री कृष्ण सर्वकालिक, सार्वभौमिक, सर्वान्तर्यामी होकर ब्रज के कण कण में व्याप्त है । भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला है।
यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया लेकिन वह भगवान को पराजित नहीं कर पाया। उसे ही परास्त होना पड़ा। रास लीला में जीव को शंका करना या काम को देखना ही पाप है। गोपी गीत पर बोलते हुए आचार्य श्री ने कहा जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है।

*शरीर की एकता समान राष्ट्र की एकता आवश्यक*

श्री शास्त्री ने बताया कि जो एकता शरीर में है, वैसी ही एकता देश में लानी होगी। हमें कुछ सीखना है तो अपने शरीर से सीखना चाहिए। परमात्मा ने सभी को सभी शक्तियां नहीं दी है। एक के पास ज्ञान है, दूसरे के पास शक्ति, तीसरे के पास धन और चौथे के पास श्रम। सभी के बिना मिले कुछ नहीं हो सकता। आचार्य श्री ने कहा कि हम मूर्ति की पूजा करते हैं। उसका समाधान करते हुए उन्होंने कहा कि चंचल मन को स्थिर करने के लिए कोई अधिष्ठान चाहिए और यह अधिष्ठान मूर्ति है। उन्होंने कहा कि नर्सरी में पढ़ने वाले बच्चे को शब्द के अर्थ समझाने के लिए चित्र का सहारा लेना पड़ता है।

*पैसा जीवन के लिए जरुरी यह भावना मन में रखें*

आचार्य ने कहा कि पैसा जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन जीवन के लिए पैसा जरूरी नहीं। सत्य मार्ग पर चलकर पैसा कमाओ, अधर्म के रास्ते नहीं। अधर्म के रास्ते कमाए धन से शांति नहीं मिलती। कोई भी कार्य शुरू करने से पहले संकल्प कराया जाता है। संकल्प का अर्थ होता है सम्यक कल्पना अर्थात् कार्य करने से पहले हमें यह विचार करना चाहिए कि उससे लाभ होगा या नुकसान। यह सोचकर हम कार्य करेंगे तो हमें नुकसान नहीं होगा और हमारे कार्य हमें शांति देगी। यदि संकल्प जल की तरह पवित्र होगा तो कार्य सफल होगा।

*चारों वर्णों में एकता आने से बन सकती है बड़ी शक्ति।*

आचार्य श्री ने कहा कि मां दुर्गा अष्ट भुजा वाली होती है क्योंकि माताओं का ध्यान सब जगह होता है। उनमें एक साथ अनेक कार्य करने की क्षमता होती है। वर्ण चार होते है, यदि चारों वर्णों में एका हो जाए तो यह अष्ट भुजा हो जाती है इसीलिए मां दुर्गा अष्टभुजा है। ब्रम्हा जी के चार मुख एवं विष्णु जी की चार भुजाएं होती है, वर्ण चार होते हैं, यदि इन चारों वर्णों में एकता आ जाये तो यह एक बड़ी शक्ति हो जाती है, यहीं विराट स्वरूप परमात्मा है। हम इस विराट स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करते हैं।

*ये पब्लिक सब जानती है इसमें बड़ी शक्ति निहित*

कथा के दौरान पुज्य आचार्य श्री ने कहा कि जनता जनार्दन है। सत्ता पर जनता ही बिठाती है एवं वहीं नीचे भी उतारती है, जनता में बड़ी शक्ति है, यदि जनता जागती है तो कितना भी बड़ा तानाशाह क्यों न हो, जनता उसे उखाड़ फेंकती है। जनता ने जिसको शासन करने का आदेश दिया, वह निष्पक्ष शासन करें और जनता के हित में कार्य करे, जिसे प्रतिपक्ष बनाया गया है वह प्रबल प्रतिपक्ष का कार्य करते हुए प्रजातंत्र को मजबूत करें।

*भारत भोग भूमि नहीं, कर्मभूमि:*

देशनाम भारत की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि भा मतलब सूूरज, यानी प्रकाश की आराधना में रत सूरज। ये भोग भूमि नहीं कर्मभूमि हैं। शरीर में जो स्थान ह्दय का है, दुनिया में वो स्थान भारत का है। ईश्वर की सत्ता सर्वत्र है, लेकिन भारत हॄदयरूपी राजधानी है।

*हर पुरुष में स्त्री और हर स्त्री में पुरुष:*
स्त्री-पुरुष को एक दूसरे का पूरक बताते हुए कहा कि हर पुरुष में स्त्री के और हर स्त्री में पुरुष होता है। कोई स्त्री संपूर्ण स्त्री नहीं और कोई पुरुष संपूर्ण पुरुष नहीं हैं। शरीर शिव का मंदिर है। इस बात को हमें आत्मसात करना होगा।

*नशा जीवन के नाश का कारण:-*

आचार्य श्री ने बीड़ी , सिगरेट , तम्बाकू , गुटखा ,शराब आदि नशे से दूर रहने का आवाहन किया । नशा जीवन के नाश का प्रमुख कारण है , युवाओं में फैल रहे गुटखा आदि व्यसनों से उत्तेजना फैल रही है जो उन्हें निंदित काम की ओर धकेलती हैं। आचार्य श्री ने बताया कि भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे, जिसमें एक कारण कंस वध भी था। कंस के अत्याचार से पृथ्वी त्राह त्राह जब करने लगी तब लोग भगवान से गुहार लगाने लगे। तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों ही होना निश्चित है। इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। 11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अक्रूर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ। कृष्ण भगवान ने रुक्मणी का हरण करके उनसे विवाह किया था। उन्होंने कहा कि रुक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती। यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। कथा के शुभारंभ पर व्यास पूजन बसंतीलाल सोलंकी , देवीलाल सोलंकी , वैभव सोलंकी , किशोर सोलंकी इंडेन गैस, जगदीश प्रजापति, मोहनलाल पाटीदार कोदली, बगदीराम पाटीदार बनी, हेमेंद्रसिंह राठौर ने किया । संचालन हरिराम पाटीदार बनी ने किया।

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