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झाबुआ@मुकेश सिसोदिया ✍️
प्रदेश सरकार द्वारा बच्चों की शिक्षा और उनके पोषण को बेहतर बनाने के उद्देश्य से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके तहत सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को मीनू के अनुसार भोजन और स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष “जल जीवन मिशन” के तहत सभी स्कूलों में हैंड वॉश यूनिट का निर्माण करवाया गया था। हालांकि, कई ग्रामीण स्कूलों में यह यूनिट सिर्फ शोपीस बनकर रह गई है। कई स्कूलों में पानी की कमी होने के कारण ट्यूबवेल बंद पड़े हैं, और कई जगह तो हैंड वॉश यूनिट के नल भी गायब हैं।
भामल, रंन्नी और नरसिगपाड़ा जैसे मिडिल स्कूलों में हैंड वॉश यूनिट में पानी की समस्या बनी हुई है, जिससे बच्चों को स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा, ग्रामीणों द्वारा लगातार मध्यान्ह भोजन में अनियमितताओं की शिकायत की जा रही है, लेकिन अधिकारियों द्वारा इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
स्वतंत्रता दिवस पर भामल मिडिल स्कूल में बच्चे हर्षोल्लास के साथ प्रभात फेरी और सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम के पश्चात बच्चों को मध्यान्ह भोजन के लिए बुलाया गया, लेकिन भोजन मीनू के अनुसार नहीं था। जानकारी के अनुसार, अंबे माता बचत समूह द्वारा भोजन तैयार किया गया था। शाला प्रभारी वरसींग कटारा ने बताया कि स्कूल में कुल 264 बच्चे दर्ज हैं, जिनमें से प्रतिदिन लगभग 150 से अधिक बच्चे उपस्थित रहते हैं।
वरसींग कटारा ने यह भी माना कि मीनू के अनुसार भोजन तो बनता है, लेकिन सामग्री की कमी के कारण बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता। स्वतंत्रता दिवस के दिन भी बच्चों को खीर में शक्कर कम मिली और चूरमा बनाया गया जबकि मीनू में हलवा बनना चाहिए था। पूरी तो बनाई गई थी, लेकिन भोजन में अन्य कमियों के कारण ग्रामीणों ने समूह संचालकों पर नाराजगी जताई।
ग्रामीणों का कहना है कि भोजन बनाने वाली महिलाओं को भी पर्याप्त सामग्री नहीं दी जाती, जिससे भोजन मीनू के अनुसार नहीं बन पाता। पूनमचंद वसुनिया और लाला पंवार ने कहा कि बच्चों ने उन्हें बताया कि यह स्थिति प्रतिदिन की है। महिलाओं का कहना है कि उन्हें जो सामग्री दी जाती है, वे उसी के अनुसार भोजन बनाती हैं, और समूह द्वारा दी जाने वाली सामग्री की मात्रा भी पर्याप्त नहीं होती।