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श्री नारायण की भक्ति से ही परम् आनंद की प्राप्ति सम्भव- आचार्य डॉ. देवेंद्र शास्त्री।

रायपुरिया@राजेश राठौड़ 

रायपुरिया- नारायण की भक्ति में ही परम आनंद मिलता है। उसकी वाणी सागर का मोती बन जाता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं। वासनाओं का त्याग करके ही प्रभु से मिलन संभव है। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वासना को वस्त्र की भांति त्याग देना चाहिए। भागवत कथा का जो श्रवण करता है भगवान का आशीर्वाद बना रहता है। श्री हरि नाम संकीर्तन करने से बड़े से बड़े संकटों से मुक्ति मिल जाती है। उन्होंने कहा कि पाप आंख एवं कान दो इंद्रियों से शरीर में प्रवेश करते है, इसलिए कान से भगवान की चर्चा सुनें तथा आंख से मंगलमय दृश्यों को देखें। उन्होंने अजामिल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि अजामिल ने एक दूषित दृश्य देखा और उसका पतन हो गया। लेकिन भगवान का एक बार नारायण नाम लेने से उसका उद्धार हो गया। उन्होंने कहा कि बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार अवश्य दें। संस्कार विहीन बालक दिशा भ्रमित हो जाता है। उन्होंने ध्रुव जी के प्रसंग में कहा कि ध्रुव जी को माता के संस्कार होने से नारद जैसा गुरु मिला और भगवान के परम पद की प्राप्ति हुई। भागवत भूषण आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने शनिवार को पेटलावद सहित समूचे अंचल से कथा श्रवण हेतु आये श्रद्धालुओं को धर्म का मर्म समझाया और आलस्य त्यागने पर जोर दिया। उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है…। इस भजन के जरिए लोगों को आलस्य प्रमाद से बचने की सलाह दी। कहा कि आलस्य जिन्दा आदमी की कब्र है और प्रमाद मृत्यु। ये दोनों मनुष्य के शत्रु हैं। प्रमाद में लोग अपने उद्देश्य भूल जाते हैं। लक्ष्य की प्राप्ति में शिथिलता ही आलस्य है।

इससे पहले व्यास पूजन हुआ। इस दाैरान कथा के मनोरथी बसंतीलाल सोलंकी मोहनकोट वालों ने सपत्नीक किया एवं वैभव सोलंकी, अनिकेत सोलंकी, कुंजन मालवीया, हेमेंद्रसिंह राठौड़, पंकज पाटीदार ने पुष्पगुच्छ से स्वागत किया।

धर्म का शाश्वत अर्थ ही सत्य है..

आचार्यश्री ने कहा कि धर्म दूसर सत्य समाना….। यानी सत्य का पालन ही धर्म है। लाख पूजा करो, पर उसमें सत्य नहीं तो कोई फायदा नहीं। कई लोग इतने धार्मिक होते हैं कि प्याज-लहसुन तक नहीं खाते, पर घूस खाते हैं। गलत काम कर माल बनाते हैं। इस तरह के धार्मिक लोगों को कभी शांति नहीं मिल सकती है। कैसे आएगी शांति। जब तक जीवन में शुद्धि नहीं, शांति नहीं हो सकती। लोग पहले भी दुखी थे जब झोपड़ियाें में रहते थे। आज भी दुखी हैं, जब एसी कमरों में रहते हैं।

सद्गुरु की सेवा ही आध्यात्म् दृष्टि है।

कथा व्यास श्रीशास्त्री ने कहा कि दर्पणकभी झूठ नहीं बोलता है। जब कोई तुम्हारी निंदा या बड़ाई करे, तो दर्पण जरूर देखें। दर्पण ही जीवन का दर्शन कराने वाला। दृष्टि सद् गुरु देता है और यह सत्संग से मिलती है। सदगुरु की सेवा करनी चाहिए। सेवा का मतलब है उसके बताए मार्ग पर चलना। वैसा आचरण होगा, तभी मन-मुकुर साफ होगा। इसके लिए जरूरत है मन के दर्पण को साफ स्वच्छ रखने की। अध्यात्म की दृष्टि सद्गुरु की सेवा करने से ही प्राप्त होती हैं*

जो आनंद सिंधु सुख राशि…

आचार्यश्री शास्त्री ने कथा में कहा कि जोआनंद सिंधु सुख राशि…। यानी जो आनंद का सिंधु है। वही सुख का खजाना है। परमात्मा ऐसे कृपा सिंधु हैं कि उनकी थोड़ी सी कृपा से त्रिलोक सुखी हो जाता है। आचार्यश्री ने भगवान राम के साथ सूर्पणखा शबरी का उदाहरण देते हुए राग और अनुराग में अंतर समझाया। कहा कि राग हमेशा अपने स्वार्थ सुख की चिंता करता है, जबकि अनुराग तत्सुख का चिंतन करता है। राग अपने स्वार्थ को साधने के लिए दिखावा करता है, नाटक करता है। सूर्पणखा राम की सुंदरता पर मोहित थी। जबकि सबरी रामचंद्र जी को, इसलिए जूठे बेर खिला रही थी कि प्रभु को खट्‌टे बेर नहीं मिले।

धर्म का संबंध करूणा से है।

श्री शास्त्री ने कहा कि कट्‌टरता से धर्म का संबंध नहीं है। धर्म का संबंध सत्य से है, संख्या से नहीं। जिस दिन धर्म में कट्‌टरता आ जाए धर्म समाप्त होने लगता है। धर्मांतरण जैसा कोई अधार्मिक कार्य हो ही नहीं सकता है। हमें हिन्दू धर्म को परम वैभव पर पहुँचाना हैं। यदि हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा।

भागवत का कार्य है विवेक को जागरूक करना।

आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने कहा कि जीवन में सही मार्गदर्शन के लिए सदगुरु सत्संग की आवश्यकता है। असत्य का त्याग ही सत्संग है। भागवत कथा सिर्फ एक बार सुनने की चीज नहीं है, यह रेगुलर सुनने की चीज है। जिस तरह दवा रेगुलर यूज करने से फायदा पहुंचाती है, उसी तरह कथा भी जीवन को संवारती है। जिसमें रुचि होती है, लोग पहले वही करते हैं। यही कारण है कि लोग कथा छोड़ वेब सीरीज देखने लगते हैं। कथा के तीसरे दिन भाजपा जिलाध्यक्ष प्रवीण सुराणा, कोषाध्यक्ष महावीर भंडारी, संयोजक हेमंत भट, ठाकुर डूंगरसिंह राठौर, अशोक भटेवरा सहित समूचे अंचल से हजारों की तादात में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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